सरहद पार के कुछ बन्दे यूँ सरहद पार जो करते हैं,
इंसानियत की हर हद को वो तार-तार फिर करते हैं,
कभी मुम्बई कभी पंजाब कभी उरी को वो दहलाते हैं,
मर्यादा की सीमा लांघ भी वो बाल-बाल बच जाते हैं...
बन्दूक से निकली गोली का मजहब न कोई होता है,
हैवान बड़ा वो होता है और अंजाम बुरा भी होता है,
वो आते हैं गोली और बम बरसाते हैं,
यहाँ तख्तों पर बैठे नौकरशाहों के दावे धरे रह जाते हैं...
बहुत हुआ सम्मान अब मकाम हमें तय करना है,
शहीदों की शहादत का परिणाम हमें तय करना है,
गलती जो की है तो पछतावे की आग में अब वो तड़पेंगे,
वो लाख गिराएं गोले हम ओले बन उनपर बरसेंगे...
मर मिटे जो इस देश पे वो लौट के अब ना आएंगे,
भारत माँ के वो बेटे अब वीर सपूत कहलायेंगे,
जो खो दिया इस देश ने वो खोकर भी वापस पायेगा,
अब फिर से हिंदुस्तान में सुख-शांति का परचम लहराएगा,
फिर से अब हिंदुस्तान में खुशहाल तिरंगा लहराएगा...
- प्रशांत द्विवेदी
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