Friday 14 September 2018

" नेतानगरी "

हो गयी हैं बातें अब काफी जो मोहब्बतों की,
चलो थोड़ी करते हैं बात राजनीती की,
गाड़ी, घोड़ा, बंगला और राज गुप्त दौलत का,
कि कैसे इन नेताओं के चर्चे होते गये,
कोई कहे दिन है तो कोई कहे रात आज,
जनता भी बोले इनके वादे झोल हो गये,
बात करते हैं घर, बिजली, पानी की अब,
फाईलों में दर्ज होकर पन्ने गोल हो गये,
माईक और मंच का तो साथ जन्मजात का है,
देखो मंच के वो बड़े बोल फेल हो गये,
काली सदरी के संग टोपी है सफ़ेद भाई,
देखो कुर्ते की जेब में भी छेद हो गये,
साम, दाम, दंड, भेद सब अपनाने लगे,
जब से इन नेताओं के हथकंडे ढेर हो गये,
आम आदमी तो और आम ही होता गया है,
खास थे जो वो तो और खास ही हैं हो गये,
मज़हब के नाम का जो गन्दा खेल खेलते हो,
देखो आज देश के हालात कैसे हो गये,
वक़्त है अभी भी झूंठे वादे सारे छोड़ दो तुम,
देखो कैसे नाम वाले बदनाम सारे हो गये.....

-प्रशांत द्विवेदी