Wednesday 17 August 2016

" अनजाना सा सपना "

अनजाना सा इक सपना था,
राह में कोई अपना था,
चाह थी उससे मिलने की,
साथ ज़िन्दगी जीने की...
ये बस ख़्वाबों का इक झोंका था,
दिल ने ही दिल को रोका था,
मिलके मुझसे उसने मुंह यूँ मोड़ा,
जीने की इक आस को उसने पल में तोड़ा...
अब ना उससे टकराऊंगा,
खाई है कसम,
ऐ ज़िन्दगी,
लौट के वापस आऊंगा,
मैं लौट के वापस आऊंगा...

- प्रशांत द्विवेदी

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