जब हम खोए हुए से रहते थे,
कुछ गुमसुम से बैठे रहते थे,
जब पास ना कोई अपना था,
एहसास ना कोई अपना था,
संग इक ख़ुशी की तलाश में,
अनजाने से अटूट विस्वास में,
जो साथ हर कदम था,
वो थी इक सच्ची सी दोस्ती...
जब मै ग़मों से लड़कर हारा था,
इक सपना भी ना गंवारा था,
हो गया था जब बेहाल सा,
इक अनसुलझे से सवाल सा,
तब भी साथ थी जो मेरे,
वो थी इक सच्ची सी दोस्ती...
अब मैने भी हर गम भूलकर,
हर सितम को पीछे छोंड़कर,
अपना ली है,
सच्चे दोस्त की इक सच्ची सी दोस्ती...
- प्रशांत द्विवेदी
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