हर इंसान की अपनी इक मजबूरी होती है,
ज़िंदा रहने को कुछ ख्वाहिशें ज़रूरी होती हैं,
भटकता रहता है वो जीवन की राहों में,
इक आस भी न मिलती उसे इन सन्नाटों में,
रहता है मिलने को खुद से बेकरार,
हर पल करता है वो इक ख़ुशी का इंतज़ार...
चाहे सपने हों उसके पूरे,
या रह जाएं कुछ आधे अधूरे,
जुड़ सके वो अपने हालात से,
या हो कुछ दूर लोगों के विस्वास से,
जी सकता है वो जीवन के दिन चार,
क्यूंकि हर पल करता है वो इक ख़ुशी का इंतज़ार,
बस इक छोटी सी ख़ुशी का इंतज़ार...
- प्रशांत द्विवेदी
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