इरादे नेक थे मेरे और इरादे नेक हैं,
कुसूर बस इतना सा है कि अब मैंने दिल लगाना छोड़ दिया है...!!
- प्रशांत
(अपनी कलम की स्याही से शब्दों को पिरोता हूं...मैं 'प्रशांत' हूं जनाब कभी सच तो कभी ख्वाब संजो के लिखता हूं...♥☺)
इरादे नेक थे मेरे और इरादे नेक हैं,
कुसूर बस इतना सा है कि अब मैंने दिल लगाना छोड़ दिया है...!!
- प्रशांत
चेहरे तो वो पढ़ते हैं जिनमे शख्सियत ना पहचानने का इल्म हो,
हम तो वो हैं जो लोगों के दिल में उतर कर उनकी फितरत जान लेते हैं...!!
- प्रशांत
कैसा अजनबी सा है ये सिलसिला वक़्त का,
सवालों के दायरे में हम आते नहीं हैं,
और जवाब का इंतजार करते-करते सारा जहाँ सो गया..!!
- प्रशांत