आजकल बेसुध सा चलता हूं
इन आड़ी-तिरछी राहों पर,
कि कहीं कोई ऐसा हमसफर तो होगा
कि कहीं कोई ऐसा हमसफर तो होगा
जिसे साथ चलने की इक तलब सी होगी,
समझ भी होगी जिसमें फिक्र भी होगी
समझ भी होगी जिसमें फिक्र भी होगी
और कम से कम इनायत तो होगी उसमें,
कैसा होगा वो जहां ज़रा अंदाज़ा तो लगाना,
ज़िंदगी की ज़रूरत पे वक़्त का तकाज़ा तो लगाना,
रूठूंगा नहीं ज़िंदगी से कभी
कैसा होगा वो जहां ज़रा अंदाज़ा तो लगाना,
ज़िंदगी की ज़रूरत पे वक़्त का तकाज़ा तो लगाना,
रूठूंगा नहीं ज़िंदगी से कभी
भले तन्हाई अकेला सहारा क्यूं ना हो,
मोहब्बत भी लाज़मी है नाचीज़ दिल की,
फक़त हमसफर की इजाज़त तो लेकर आना,
कहते हैं कि उनकी किस्मत बड़ी बुलंद होती है
मोहब्बत भी लाज़मी है नाचीज़ दिल की,
फक़त हमसफर की इजाज़त तो लेकर आना,
कहते हैं कि उनकी किस्मत बड़ी बुलंद होती है
जिनके माथे पर ज़रा भी शिकन ना हो,
मैंने भी कोशिश की शिकन दूर करने की,
पर कम्बख़्त ज़िंदगी है कि वक़्त के कहने पर
मैंने भी कोशिश की शिकन दूर करने की,
पर कम्बख़्त ज़िंदगी है कि वक़्त के कहने पर
हांथ ही खड़े कर देती है,
तलाश आज भी जारी है ऐसे हमसफर की
तलाश आज भी जारी है ऐसे हमसफर की
जो मुझे मुझसे ज्यादा अपना समझे,
अरे ज़िंदगी ना सही कम से कम अश्कों का
अरे ज़िंदगी ना सही कम से कम अश्कों का
बोझ संभालने वाला इक कंधा तो समझे...
- प्रशांत द्विवेदी
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