Tuesday 10 July 2018

जो बोलोगे मान लूंगा...

क्यूं हो ख़फा मुझसे ऐसी क्या थी ख़ता मेरी,
क्यूं हो जुदा मुझसे आख़िर क्या है वजह ऐसी,
तुम दिन को रात बोलोगे तो मै मान लूंगा,
तुम नफ़रत को मोहब्बत के अल्फाज़ बोलोगे,
मै मुस्कुराकर मान लूंगा,
तुम बेरुखी को अपनी बेमतलब बात बोलोगे,
मै बिन कुछ बोले उसे मान लूंगा,
तुम सच्ची चाहत को मेरी इक खेल बोलोगे,
फिक्र मत करो मै वो भी मान लूंगा,
मै मान लूंगा हर वो बात तेरी,
जो झूठा साबित करती हो मेरे सच्चे दिल को,
मै मान लूंगा हर वो बात तेरी,
जो मुझे मेरी नज़रों में ही गिराती हो,
याद रखना इक अदब सी थी मेरी चाहत में तेरी ख़ातिर,
अरे चूज़े जैसा होकर भी आसमां से तारे तोड़ने चला था,
ख़ैर ना चाह कर भी दबा दी मैंने हर वो बात जो ज़ुबां पे थी मेरे,
तुझे हर पल बस मुस्कुराता देखने की हसरत जो थी मेरी,
वो कहते हैं ना समय से पहले और भाग्य से ज़्यादा कुछ नहीं मिलता,
बस इन्हीं शब्दों को मैंने अब दुनिया बना ली है अपनी,
तुम फिक्र मत करो अब ख़ामोश हूं मै हर पल हर वक़्त,
बस इल्तज़ा इतनी सी है कि मेरे अश्कों की सच्ची जगह कहां होगी,
तुम इशारे से मुझे कुछ भी बता देना,
एे ज़िंदगी मै सब सच मान लूंगा...

- प्रशांत द्विवेदी

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