Thursday 16 November 2017

" वो बचपन की बात कुछ और थी "

बचपन की वो छुपन-छुपाई वो शोर-शराबा अब गुज़रा कल हो गया है,
दिल तो वही है बस कद थोड़ा सा और बढ़ गया है,
आज भी ताज़ा हैं जेहन में हर वो ख़्वाहिश जो नटखट हुआ करती थी,
जनाब वो बचपन की बात कुछ और ही हुआ करती थी...

दिल तो बच्चा था और इरादों में सच्चाई थी,
नादानी में किए गए हर इक वादे में सच्चाई थी,
जो जैसा मिलता था उसे अपनाने में हिचक भी हुआ करती थी,
जनाब वो बचपन की बात कुछ और ही हुआ करती थी...

हम रोते थे तो हमें चुप कराने वाला भी कोई था,
हर खुशी में हमारा साथ निभाने वाला कोई था,
माँ-पापा से ही तो हमारी दुनिया हुआ करती थी,
जनाब वो बचपन की बात कुछ और ही हुआ करती थी...

पर अब जाकर एहसास हुआ,
बड़ा फर्क होता है बचपन और जवानी में,
बचपन तो मासूम था,
लेकिन जद्दोजहद करनी पड़ती है अब ज़िंदगी की रवानी में,
आँसुओं के बाद ख़ुशी और झगड़े के बाद प्यार,
यही तो बचपन की सौगात हुआ करती थी,
जनाब वो बचपन की बात कुछ और ही हुआ करती थी...

- प्रशांत द्विवेदी

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