वो भूली बिसरी बातें,
वो हल्की शाम की मुलाकातें,
वो महफ़िल में सजती फरमाईशें,
वो हर पल बढ़ती गुंजाईशें,
अब इक सपना सा हो गयी हैं,
जो मनचली दुनिया में कहीं खो सी गयी हैं,
अब इनके वापस आने की ना है उम्मीद,
फिर भी हम ख़ुदा के बन्दे हैं इनके मुरीद...
वो दिलों की बढ़ती दूरियां,
वो लोगों की अपनी मज़बूरियां,
वो अनजाने में हुई गुस्ताखियां,
वो रिश्तों में पनपती खामोशियाँ,
जिनका सुधरना सपना सा हो गया है,
मनचली दुनिया में जिनका वज़ूद खो सा गया है,
अब इनके संभलने की ना है उम्मीद,
फिर भी हम खुदा के बन्दे हैं इनके मुरीद...
ऐ ख़ुदा तेरे बन्दों पे कुछ रहमत कर,
जो करते हैं तेरी तू उनकी भी इबादत कर,
तेरे दर पे जो फिर से सर झुका सके,
मनचली दुनिया में उनकी ऐसी खिदमत कर,
ऐ खुदा हम बन्दों की तू हिफाज़त कर...
- प्रशांत
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