Monday 23 January 2017

" काश मै तेरा हमदम बन पाता "

दो लफ्ज यूँ मुझसे जो तू कह देता, 
फिर आज ढलता हुआ ये दिन मेरा संवर जाता,
कुछ अनजाने से लम्हों के इशारों पे,
बेसुध सा मैं शायद थोड़ा मचल जाता...
ख्वाहिशों के मैखाने पे जो निगाहें थी मेरी,
काश उन निगाहों से तेरा दीदार मैं कर पाता,
अब तो है बस गया हर याद में तू मेरी,
उन यादों के सहारे काश तेरा भी दिन गुज़र जाता...
मेरे दिल में है जो कशिश तेरे प्यार की,
काश मैं उस प्यार का इज़हार तुझसे कर पाता,
सहम सा जाता हूँ अपनी यादों में तेरी गैरमौजूदगी से,
एहसास तेरी मौजूदगी का काश मैं खुद को करा पाता...
गर तेरे संग रहने की इजाज़त ना थी मुझको,
इल्तज़ा है यही काश मैं तेरी दुआओं में ही रह जाता,
खुद से तो तेरा ज़िक्र मैं हर पल किया करता था,
उस ज़िक्र का काश मैं कभी हिस्सा भी बन पाता...
अब कहीं बन ना जाये नासूर ये ग़म मेरा,
कि काश ज़िन्दगी भर को मैं तेरा हमदम ही बन पाता,
ऐ काश वो दिन भी होता जब मैं तेरा हमदम भी बन पाता...

# प्रशांत

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